ॐ भूर्भुवः स्वः' गायत्री मंत्र का एक भाग है. इसका अर्थ है- ' हमारे मन को जगाने की अपील करते हुए हम माता से प्रार्थना करते हैं कि वह हमें शुभ कार्यों की ओर प्रेरित करे '. 'ॐ भूर्भुवः स्वः' के शब्दों के अर्थ: ॐ - आदि ध्वनि, भूर् - भौतिक शरीर या भौतिक क्षेत्र, भुव - जीवन शक्ति या मानसिक क्षेत्र, स्व - जीवात्मा. गायत्री मंत्र के अन्य शब्दों के अर्थ: तत् - वह (ईश्वर) सवितुर - सूर्य, सृष्टिकर्ता (सभी जीवन का स्रोत) वरेण्यं - आराधना भर्गो - तेज (दिव्य प्रकाश) देवस्य - सर्वोच्च भगवान धीमहि - ध्यान धियो - बुद्धि को यो - जो नः - हमारी प्रचोदयात् - शुभ कार्यों में प्रेरित करें गायत्री मंत्र के नियमित जाप से मन शांत और एकाग्र रहता है. मान्यता है कि इस मंत्र का लगातार जपा जाए, तो इससे मस्तिष्क का तंत्र बदल जाता है.
जहां दया वहां धर्म है, जहां झूठ कहां तह पापा।
जहां लोग को मरण है, कहां गए तुलसीदास।।
दाता के दरबार सभी खड़े हाथ जोड़।
देने वाला एक है मंगत लाख-करोड़।।
प्रभु इतना धन दीजिए जिसमें कुटुंब समये।
मैं भी भूखा ना रहूं साधु न भूखा जाए।।
आया है सो जाएगा राजा रंक फकीर।
एक सिंहासन चढ़ चले एक दावे चले जंजीर।।
दो बातों को याद रखो जो चाहे कल्याण।
नारायण एक मौत का तुझ श्री भगवान।।
बंसी वाले सावरे दीजौ दर्शन एक बार।
चरण-शरण की दीजिए छूटे ना तेरा द्वार।
बांकी झांकी श्याम की वजह हृदय के बीच।।
जब चाहे दर्शन करूं झटपट हरी मीच।।
धन जीवन उड़ जाएगा जैसे उड़त कपूर।
मन मूरख गोविंद भज जो चाहे जग दूर
सुबह सवेरे जाग के थ्रू प्रभु का ध्यान।
भजन करो श्री राम का जब सोए कल्याण।
कामी क्रोधी लालची इनसे भक्ति न होय।
भक्ति करे कोई सूरमा, जात पात ना होए।।
लेने को हरि नाम है देने को अन्नदान।
तलने को मत दान का, डूबने को अभिमान।।
नारायण संसार में भूतप को भरे अनेक।
तेरी- मेरी कर चले लेने गये तिल एक।।
आज भी तेरा आसरा, कल भी तेरा आस।
पलक पलक तेरा आसरा छोड़ू ना बारहो मास।
संजीवनी बूटी नाम की ह्रदय लई परोय।
कंचन काया हेतु है इस बूटी के जोर।
राधा तू बड़ भागिनी कौन तपस्या कीन।
तीन लोक तारण- तारण सो तेरे अधीन।।
राधा मेरी स्वमीन मे राधे को दास।
जनम जनम मोहे दीजियो वृंदावन वास।।
राधा राधा कहे से सब व्याधा कट जाते।
कोटि जन्म की आपदा श्री राधा कहे से जाते।
श्व़ास-श्व़ास में राम रट बृंदा श्व़ास न कोय।
ना जानू यहां श्व़ास का आवंटन होय न होय।।
राम नाम के आलसी भोजन के होशियार।
तुलसी ऐसे धरो को बार बार धिक्कार।।
दीन दया, दुख भुजना घट घट के आधार।
फूलों की वर्षा करें मेरी कोटि-कोटि नमन।।।
जहां लोग को मरण है, कहां गए तुलसीदास।।
दाता के दरबार सभी खड़े हाथ जोड़।
देने वाला एक है मंगत लाख-करोड़।।
प्रभु इतना धन दीजिए जिसमें कुटुंब समये।
मैं भी भूखा ना रहूं साधु न भूखा जाए।।
आया है सो जाएगा राजा रंक फकीर।
एक सिंहासन चढ़ चले एक दावे चले जंजीर।।
दो बातों को याद रखो जो चाहे कल्याण।
नारायण एक मौत का तुझ श्री भगवान।।
बंसी वाले सावरे दीजौ दर्शन एक बार।
चरण-शरण की दीजिए छूटे ना तेरा द्वार।
बांकी झांकी श्याम की वजह हृदय के बीच।।
जब चाहे दर्शन करूं झटपट हरी मीच।।
धन जीवन उड़ जाएगा जैसे उड़त कपूर।
मन मूरख गोविंद भज जो चाहे जग दूर
सुबह सवेरे जाग के थ्रू प्रभु का ध्यान।
भजन करो श्री राम का जब सोए कल्याण।
कामी क्रोधी लालची इनसे भक्ति न होय।
भक्ति करे कोई सूरमा, जात पात ना होए।।
लेने को हरि नाम है देने को अन्नदान।
तलने को मत दान का, डूबने को अभिमान।।
नारायण संसार में भूतप को भरे अनेक।
तेरी- मेरी कर चले लेने गये तिल एक।।
आज भी तेरा आसरा, कल भी तेरा आस।
पलक पलक तेरा आसरा छोड़ू ना बारहो मास।
संजीवनी बूटी नाम की ह्रदय लई परोय।
कंचन काया हेतु है इस बूटी के जोर।
राधा तू बड़ भागिनी कौन तपस्या कीन।
तीन लोक तारण- तारण सो तेरे अधीन।।
राधा मेरी स्वमीन मे राधे को दास।
जनम जनम मोहे दीजियो वृंदावन वास।।
राधा राधा कहे से सब व्याधा कट जाते।
कोटि जन्म की आपदा श्री राधा कहे से जाते।
श्व़ास-श्व़ास में राम रट बृंदा श्व़ास न कोय।
ना जानू यहां श्व़ास का आवंटन होय न होय।।
राम नाम के आलसी भोजन के होशियार।
तुलसी ऐसे धरो को बार बार धिक्कार।।
दीन दया, दुख भुजना घट घट के आधार।
फूलों की वर्षा करें मेरी कोटि-कोटि नमन।।।
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