Aap ke bhitar hi toh hai jagat ka palan karta fir kyo bhatak te hai dar badar ......
जहां दया वहां धर्म है, जहां झूठ कहां तह पापा।
जहां लोग को मरण है, कहां गए तुलसीदास।।
दाता के दरबार सभी खड़े हाथ जोड़।
देने वाला एक है मंगत लाख-करोड़।।
प्रभु इतना धन दीजिए जिसमें कुटुंब समये।
मैं भी भूखा ना रहूं साधु न भूखा जाए।।
आया है सो जाएगा राजा रंक फकीर।
एक सिंहासन चढ़ चले एक दावे चले जंजीर।।
दो बातों को याद रखो जो चाहे कल्याण।
नारायण एक मौत का तुझ श्री भगवान।।
बंसी वाले सावरे दीजौ दर्शन एक बार।
चरण-शरण की दीजिए छूटे ना तेरा द्वार।
बांकी झांकी श्याम की वजह हृदय के बीच।।
जब चाहे दर्शन करूं झटपट हरी मीच।।
धन जीवन उड़ जाएगा जैसे उड़त कपूर।
मन मूरख गोविंद भज जो चाहे जग दूर
सुबह सवेरे जाग के थ्रू प्रभु का ध्यान।
भजन करो श्री राम का जब सोए कल्याण।
कामी क्रोधी लालची इनसे भक्ति न होय।
भक्ति करे कोई सूरमा, जात पात ना होए।।
लेने को हरि नाम है देने को अन्नदान।
तलने को मत दान का, डूबने को अभिमान।।
नारायण संसार में भूतप को भरे अनेक।
तेरी- मेरी कर चले लेने गये तिल एक।।
आज भी तेरा आसरा, कल भी तेरा आस।
पलक पलक तेरा आसरा छोड़ू ना बारहो मास।
संजीवनी बूटी नाम की ह्रदय लई परोय।
कंचन काया हेतु है इस बूटी के जोर।
राधा तू बड़ भागिनी कौन तपस्या कीन।
तीन लोक तारण- तारण सो तेरे अधीन।।
राधा मेरी स्वमीन मे राधे को दास।
जनम जनम मोहे दीजियो वृंदावन वास।।
राधा राधा कहे से सब व्याधा कट जाते।
कोटि जन्म की आपदा श्री राधा कहे से जाते।
श्व़ास-श्व़ास में राम रट बृंदा श्व़ास न कोय।
ना जानू यहां श्व़ास का आवंटन होय न होय।।
राम नाम के आलसी भोजन के होशियार।
तुलसी ऐसे धरो को बार बार धिक्कार।।
दीन दया, दुख भुजना घट घट के आधार।
फूलों की वर्षा करें मेरी कोटि-कोटि नमन।।।
जहां लोग को मरण है, कहां गए तुलसीदास।।
दाता के दरबार सभी खड़े हाथ जोड़।
देने वाला एक है मंगत लाख-करोड़।।
प्रभु इतना धन दीजिए जिसमें कुटुंब समये।
मैं भी भूखा ना रहूं साधु न भूखा जाए।।
आया है सो जाएगा राजा रंक फकीर।
एक सिंहासन चढ़ चले एक दावे चले जंजीर।।
दो बातों को याद रखो जो चाहे कल्याण।
नारायण एक मौत का तुझ श्री भगवान।।
बंसी वाले सावरे दीजौ दर्शन एक बार।
चरण-शरण की दीजिए छूटे ना तेरा द्वार।
बांकी झांकी श्याम की वजह हृदय के बीच।।
जब चाहे दर्शन करूं झटपट हरी मीच।।
धन जीवन उड़ जाएगा जैसे उड़त कपूर।
मन मूरख गोविंद भज जो चाहे जग दूर
सुबह सवेरे जाग के थ्रू प्रभु का ध्यान।
भजन करो श्री राम का जब सोए कल्याण।
कामी क्रोधी लालची इनसे भक्ति न होय।
भक्ति करे कोई सूरमा, जात पात ना होए।।
लेने को हरि नाम है देने को अन्नदान।
तलने को मत दान का, डूबने को अभिमान।।
नारायण संसार में भूतप को भरे अनेक।
तेरी- मेरी कर चले लेने गये तिल एक।।
आज भी तेरा आसरा, कल भी तेरा आस।
पलक पलक तेरा आसरा छोड़ू ना बारहो मास।
संजीवनी बूटी नाम की ह्रदय लई परोय।
कंचन काया हेतु है इस बूटी के जोर।
राधा तू बड़ भागिनी कौन तपस्या कीन।
तीन लोक तारण- तारण सो तेरे अधीन।।
राधा मेरी स्वमीन मे राधे को दास।
जनम जनम मोहे दीजियो वृंदावन वास।।
राधा राधा कहे से सब व्याधा कट जाते।
कोटि जन्म की आपदा श्री राधा कहे से जाते।
श्व़ास-श्व़ास में राम रट बृंदा श्व़ास न कोय।
ना जानू यहां श्व़ास का आवंटन होय न होय।।
राम नाम के आलसी भोजन के होशियार।
तुलसी ऐसे धरो को बार बार धिक्कार।।
दीन दया, दुख भुजना घट घट के आधार।
फूलों की वर्षा करें मेरी कोटि-कोटि नमन।।।
Nice line
ReplyDeletethank you
DeleteAdhbhut
ReplyDeleteadhbut pangtiya
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